मध्यप्रदेश सरकार ने छात्राओं को सेनेटरी पैड के लिए उनके अकाउंट में 25-25 रुपए प्रतिमाह के हिसाब से 300 रुपए ट्रांसफर किए हैं। छात्राओं का कहना है कि 25 रुपए से एक महीने में कुछ नहीं होता। हर महीने 150 रुपए तक खर्च होते हैं। 300 रुपए तो 2 महीने में ही खर्च हो जाएंगे।
पैड लेने 12 किमी दूर जाना पड़ता है
गवर्नमेंट हाई स्कूल खारपा की छात्रा दीपिका कहती हैं कि सेनेटरी पैड लेने के लिए गांव से 12 किलोमीटर दूर बस से जाना पड़ता है। गांव में किराना दुकान और जनरल स्टोर है, लेकिन यहां सेनेटरी पैड नहीं मिलता। इसकी वजह गांव की दुकान से पैड खरीदने में होने वाली झिझक है।
दो महीने में खर्च हो जाएंगे 300 रुपए
गवर्मेंट हाईस्कूल कोकड्या की टीचर रीना पाटीदार कहती हैं कि वह हर महीने सेनेटरी नैपकिन पर 150 से 200 रुपए खर्च करती हैं। सीएम डॉ. मोहन यादव ने किशोरियों को पीरियड के दौरान सेनेटरी नैपकिन के लिए जो 300 रुपए अकाउंट में ट्रांसफर किए हैं, वह दो महीने में ही खर्च हो जाएंगे। सरकार को ये राशि बढ़ानी चाहिए।
पहले नैपकिन इस्तेमाल नहीं करने के दुष्परिणाम वाले दो केस...
पेट दर्द की शिकायत लेकर पहुंची, कैंसर निकला
आलीराजपुर में रहने वाली 50 वर्षीय रचना कुमारी (परिवर्तित नाम) जुलाई के दूसरे हफ्ते में सीवियर पेट दर्द की शिकायत लेकर पहुंची। गायनाकोलॉजिस्ट ने जांच की तो यूट्रस में स्टेज-4 के सर्वाइकल कैंसर का खुलासा हुआ।
बीमारी का कारण जब महिला से पूछा तो उसने बताया कि वह पीरियड को पारंपरिक तरीके से मैनेज करती थी। सेनेटरी नैपकिन का उपयोग कभी नहीं किया। इसकी वजह ग्रामीण परिवेश में रहने के कारण महिला को नैपकिन आसानी से उपलब्ध नहीं होना सामने आई।
शादी के बाद 11 साल तक नहीं बन सकी मां
कोलार सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में पदस्थ गायनाकोलॉजिस्ट डॉ. रश्मि वर्मा ने बताया- करीब 5 साल पहले वह हरदा जिला अस्पताल में पदस्थ पर थी। तब एक महिला आशा देवी (परिवर्तित नाम) उनके पास आई। आशा शादी के 11 साल बाद भी मां नहीं बन पाई थी।
जांच में पता चला कि आशा पेल्विक इन्फ्लेमेट्री डिसीज (पीआईडी) से पीड़ित है। इस बीमारी में महिला के जेनाइटल ऑर्गंस में संक्रमण हो जाता है। महिला ने बताया कि वह माहवारी के दौरान कपड़े का उपयोग करती थी। इससे उसके यूट्रस में सीवियर इन्फेक्शन हो गया था। छह महीने के इलाज के बाद यूट्रस इन्फेक्शन ठीक हुआ। इसके बाद वह मां बनी।
लड़कियों को 4-4 घंटे में बदलने पड़ते हैं पैड
रिटायर सीनियर गायनाकोलॉजिस्ट डॉ. आभा शुक्ला ने बताया- पीरियड के दौरान मेंसट्रुअल हाइजिन को मेंटेन करने के लिए किशोरियों, लड़कियों और महिलाओं को 4-4 घंटे के अंतर से सेनेटरी नैपकिन बदलने की सलाह दी जाती है। इस फॉर्मूले एक दिन में 6 नैपकिन का उपयोग करती हैं।
मेंसट्रुअल पीरियड औसतन 5 दिन का होता है। इस कारण प्रत्येक महिला को हर महीने कम से कम 30 सेनेटरी नैपकिन की जरूरत होती है। एक अनुमान के तहत लड़की को सेनेटरी नैपकिन पर हर महीने औसतन 180 रुपए खर्च करना पड़ते हैं।
हर 6 घंटे में बदलें नैपकिन, संक्रमण नहीं होगा
काटजू हॉस्पिटल की सीनियर गायनाकोलॉजिस्ट डॉ. श्रद्धा अग्रवाल ने बताया कि एडोसलेंट हेल्थ प्रोग्राम के तहत स्कूल में पढ़ने वाली छात्राओं को मेंसट्रुअल हाइजिन मेंटेन करने के बारे में बताते हैं। उन्हें बताते हैं कि पीरियड के दिनों में ब्लीडिंग हो या नहीं हो सेनेटरी नैपकिन जरूर बदलें, क्योंकि ब्लड कल्चर मीडियम होता है। इसमें सब तरह के कीटाणु पनप जाते हैं।
देर तक नैपकिन रहेगा तो सड़न ज्यादा हो जाएगी। जो कीटाणु रहेंगे, वह बच्चेदानी और उससे आगे भी पहुंच सकते हैं। यह कीटाणु ज्यादा संक्रमण पैदा कर सकते हैं। इससे आगे की लाइफ में बांझपन, हमेशा रहने वाला पेट दर्द हो सकता है। मामूली तौर पर खुजली और पानी जाने की शिकायत कई किशोरियों को हो जाती है।
लेडीज रेस्ट रूम, 10 नंबर मार्केट, भोपाल
दोपहर 12 बजे। किशोरियों, युवतियों और महिलाओं के लिए 10 नंबर मार्केट में लेडीज रेस्ट रूम। रेस्ट रूम में सेनेटरी नैपकिन वेंडिंग मशीन लगी है। मशीन में पांच रुपए का सिक्का डालने पर वह बाहर गिर जाता है।
जबकि नगर निगम ने इस मशीन से ऑटोमैटिक नैपकिन देने की व्यवस्था की थी। यहां ड्यूटी पर तैनात महिला कर्मचारी ने बताया कि मशीन पिछले एक साल से बंद है।
भोपाल रेलवे स्टेशन, प्लेटफॉर्म नंबर 1
सुबह 11 बजे। स्टेशन के प्लेटफॉर्म नंबर एक पर वीआईपी वेटिंग रूम के पास में ही महिला जन सुविधा केंद्र है। यहां जन सुविधा शुल्क की वसूली के लिए पुरुष कर्मचारी तैनात है।
एक साल पहले लगाई गई ऑटोमैटिक सेनेटरी नैपकिन वेंडिंग मशीन गायब है। कर्मचारी ने बताया कि मशीन ऐस्कलेटर के पास लगी है, लेकिन चेक किया तो मशीन वहां भी नहीं मिली।
39% महिलाओं को नहीं मिल पाते हैं पैड
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (NFHS-5) की रिपोर्ट के अनुसार एमपी में 61 फीसदी महिलाएं (15 से 24 साल उम्र समूह) ही मेंसट्रुअल हाइजिन का ख्याल रख पाती हैं। 15 से 24 वर्ष उम्र समूह की किशोरी, युवती और महिलाएं मेंसट्रुअल हाइजिन के लिए सेनेटरी नैपकिन, मेंसट्रुअल कप का उपयोग करती हैं।
39 फीसदी किशोरी, युवती और महिलाओं को अब भी सेनेटरी नैपकिन, मेंसट्रुअल कप नहीं मिल पाते हैं। यह सभी अब भी पीरियड के दौरान पारंपरिक तरीके से कपड़े का ही इस्तेमाल करती हैं। रिपोर्ट के मुताबिक शहरी क्षेत्र में रहने वाली 82 फीसदी और ग्रामीण इलाकों में रहने वाली 53.4 प्रतिशत महिलाएं ही पीरियड के दौरान सेनेटरी नैपकिन का उपयोग करती हैं।