इस्लामाबाद: भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर 15 और 16 अक्टूबर को होने जा रहे शंघाई सहयोग संगठन के शिखर बैठक में हिस्सा लेने के लिए पाकिस्तान की यात्रा पर जा रहे हैं। यह किसी भारतीय विदेश मंत्री की 12 साल बाद पाकिस्तान यात्रा होने जा रही है। इस शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए चीन के प्रधानमंत्री पाकिस्तान पहुंच गए हैं। वहीं रूस से भी एक भारी भरकम दल पहुंच रहा है। इस शिखर सम्मेलन में सबसे ज्यादा नजरें भारतीय विदेश मंत्री पर रहेंगी। माना जा रहा है कि जयशंकर इस्लामाबाद में सीमापार आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्तान और चीन को जमकर सुना सकते हैं। वहीं यह यात्रा ऐसे समय पर हो रही है जब निज्जर हत्याकांड को लेकर कनाडा और अमेरिका के साथ रिश्ते तनावपूर्ण चल रहे हैं। वहीं चीन और रूस एससीओ को पश्चिमी देशों के खिलाफ खड़ा कर रहे हैं।
पाकिस्तान की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि पीएम शहबाज शरीफ इस एसएसओ बैठक की अध्यक्षता करेंगे। इसमें रूस के पीएम, बेलारूस और कजाखस्तान के पीएम भी हिस्सा ले रहे हैं। ईरान की ओर से उप राष्ट्रपति पहुंच रहे हैं। भारत ने साफ कर दिया है कि जयशंकर की इस यात्रा के दौरान पाकिस्तान के साथ किसी भी द्विपक्षीय बातचीत की संभावना नहीं है। इस सम्मेलन के लिए पाकिस्तान ने राजधानी इस्लामाबाद को किले में बदल दिया है और 9 हजार से भी ज्यादा सैनिक और पुलिसकर्मी तैनात किया है।
एससीओ का गठन कैसे हुआ ?
एससीओ को शंघाई फाइव के नाम से जाना जाता है जिसका गठन 1996 में किया गया था। इसमें पहले चीन, रूस, कजाखस्तान, किर्गिस्तान और ताजिकिस्तान सदस्य देश थे। इसका गठन सोवियत संघ के विघटन के बाद क्षेत्रीय सुरक्षा, सीमा पर सैनिकों की संख्या में कमी और आतंकवाद से लोहा लेना था। भारत और पाकिस्तान साल 2017 में इसके सदस्य बने थे। इसके अब कुल 10 सदस्य देश हैं। इसमें ईरान और बेलारूस शामिल हैं। एससीओ का मुख्यालय बीजिंग में है।
एससीओ अगर देखा जाए तो पश्चिमी देशों के संगठन नाटो के मुकाबले नया है लेकिन यह तेजी से अपना प्रभाव बढ़ा रहा है। आज एससीओ देशों के अंदर 3 अरब की आबादी निवास करती है। इन देशों की जीडीपी दुनिया की एक चौथाई है। कई विश्लेषकों का कहना है कि एससीओ पश्चिमी देशों के नाटो को काउंटर करने के लिए बनाया गया है। रूस और चीन दोनों ही मिलकर इसे पश्चिमी देशों का विकल्प बनाने में जुटे हुए हैं। अमेरिकी शांति संस्थान के मुताबिक चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग एससीओ और ब्रिक्स की मदद से दुनिया में अपना दबदबा बढ़ाना चाहते हैं।
भारत दे रहा बढ़ा संदेश
अमेरिकी शांति संस्थान के मुताबिक पुतिन एससीओ के जरिए यह दिखाने की कोशिश कर रहे हैं कि पश्चिमी देशों ने उन्हें भले ही युद्धापराधी घोषित कर रखा है लेकिन वह अभी भी दुनिया के अन्य देशों में आसानी से जा सकते हैं। साथ ही विदेशी नेताओं से मिल सकते हैं। वह रूस को अलग थलग करने के लिए पश्चिमी देशों के प्रयासों को फेल कर सकते हैं। वहीं भारत की बात करें तो वह एससीओ के जरिए क्षेत्रीय बाजारों तक अपनी पहुंच बढ़ा लेगा। साथ ही पश्चिमी देशों को भी संदेश दे सकता है कि वे अपनी नीतियों को थोपे नहीं।
भारत इसके जरिए पाकिस्तान पर भी दबाव बना सकता है ताकि वह आतंकवाद को रोके। भारत चीन के बीआरआई मंसूबों को भी करारा जवाब दे सकता है। भारत एससीओ के जरिए दुनिया को पश्चिमी केंद्रीत या चीन केंद्रीत होने से रोक सकता है। जयशंकर ऐसे समय पर एससीओ सम्मेलन में जा रहे हैं जब अमेरिका और कनाडा के साथ खालिस्तानी आतंकवादियों को लेकर तनाव बढ़ा हुआ है। भारत ने कनाडा से अपने उच्चायुक्त को वापस बुला लिया है और कनाडा के उच्चायुक्त को जाने के लिए कह दिया है। कनाडा बार-बार फाइव आइज और जी 7 की धमकी दे रहा है जो अमेरिका के प्रभाव वाले संगठन हैं।